सैलरी मांगने पर ITI संचालक ने पीड़ित को दी जान से मारने की धमकी और बाइक छीनी - पीड़ित
पीड़ित जब अपने हक का न्याय मांगने प्रशासन के पास गया तो वहां से मिली तो सिर्फ फटकार - पीड़ित
पीड़ित की दिव्यांग बेटी का भविष्य भी अब संकट में।
गरीबों के लिए न्याय कहाँ , न्याय तो सिर्फ पैसे वालों को ही मिलता है , इस सरकार में पीड़ित की उम्मीद होती है कि योगी सरकार की पुलिस मदद करेगी इसी उम्मीद से प्रशासन के दरवाजे खटखटाये जाते हैं लेकिन ऐसे में पीड़ित को न्याय के बजाय पुलिस फटकार मिले तो पीड़ित कहाँ जाए। पत्नी की मौत , दिव्यांग बेटी का जीवन किस तरह जियेगा यह परिवार अपना जीवन।
दबंगई और सिस्टम की बेरुखी के कारण महिला की गई जान, सेल्स मैनेजर की पत्नी ने इलाज के अभाव में तोड़ा दम , इतना ही नहीं दबंग आईटीआई संचालक पर वेतन हड़पने और बाइक छीनने का गंभीर आरोप भी लगा है।
थाने से लेकर आलाधिकारियों तक भटकता रहा पीड़ित,कोई न्याय नहीं मिला। अगर इलाज के लिए पैसे होते तो बच सकती थी महिला की जान; दिव्यांग बेटी के भविष्य पर भी संकट।
क्या है पूरा मामला ?
एटा जनपद के थाना मारहरा क्षेत्र से इंसानियत को शर्मसार करने वाला एक हृदयविदारक मामला सामने आया है। एक तरफ जहां सरकार 'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ' और 'न्याय आपके द्वार' जैसे नारे देती है, वहीं एटा में एक लाचार पिता और पति अपनी मेहनत की कमाई के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहा है। सही समय पर इलाज न मिल पाने के कारण आज पीड़ित की पत्नी ने दम तोड़ दिया, जबकि उसकी मासूम दिव्यांग बेटी आज भी मदद की आस में है।
मारहरा के मोहल्ला ब्राह्मणपुरी निवासी संजय कुमार पुत्र राजकुमार पूर्व में मयूर गुप्ता की टीवीएस एजेंसी पर सेल्स मैनेजर के पद पर कार्यरत था। एजेंसी बंद होने के बाद मयूर गुप्ता ने उसे अपनी आईटीआई (MCRK) में रिसेप्शनिस्ट बना दिया। पीड़ित का आरोप है कि उसका कुल 1,48,000 रुपये का वेतन बकाया है। जब संजय ने अपनी बीमार पत्नी और दिव्यांग बेटी के इलाज के लिए अपने हक के पैसे मांगे, तो संचालक ने घाटे का बहाना बनाकर पैसे देने से इनकार कर दिया।
इतना ही नहीं, पीड़ित का आरोप है कि पैसे मांगने पर उसे आईटीआई परिसर बुलाया गया और वहां उसकी TVS स्टार सिटी बाइक (UP 82 Z 0851) भी जबरन छीन ली गई।
पीड़ित की पत्नी डॉली की दोनों किडनियां खराब थीं, जिनका अलीगढ़ के शेखर सर्राफ अस्पताल में इलाज चल रहा था। वहीं, उसकी छोटी बेटी दोनों पैरों से पैरालाइज्ड (दिव्यांग) है, जिसका उपचार उदयपुर (राजस्थान) से चल रहा है। संजय की मां मीरा देवी ने रोते हुए बताया कि परिवार मजदूरी और ठेला लगाकर जीवन यापन कर रहा है। इलाज के लिए परिवार पहले ही भारी कर्ज में डूबा है। संजय का कहना है कि, "यदि आज मेरे पास मेरी मेहनत की कमाई के पैसे होते, तो शायद मेरी पत्नी जीवित होती।"
स्थानीय लोगों के अनुसार, आरोपी मयूर गुप्ता का रसूख और राजनैतिक कनेक्शन होने के कारण पुलिस कार्रवाई से कतरा रही है। चर्चा है कि हाल ही में एक प्रतिष्ठित अखबार से जुड़ने और रसूखदार परिवार से होने के कारण कोई उसके खिलाफ मुंह खोलने को तैयार नहीं है। यह भी अपुष्ट खबरें हैं कि आरोपी ने खुद अधिकारियों को गुमराह किया है।
फिलहाल, पीड़ित परिवार न्याय की उम्मीद में अपनी पत्नी की लाश और दिव्यांग बेटी के भविष्य को लेकर बदहवास है। अब देखना यह है कि क्या उच्चाधिकारी इस मामले का संज्ञान लेकर पीड़ित को उसका हक दिला पाएंगे या मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा
मुख्य सवाल:
संजय की पत्नी की मौत ने प्रशासन की कार्यप्रणाली पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं:
आखिर एक गरीब की मेहनत की कमाई हड़पने वाले पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
क्या पुलिस और प्रशासन सिर्फ रसूखदारों की ही बात सुनता है?
एक महिला की मौत और एक बच्ची के दिव्यांग होने की व्यथा क्या किसी अधिकारी को नजर नहीं आई?
पुलिस की भूमिका पर गंभीर सवाल
हैरानी की बात यह है कि पीड़ित ने न्याय के लिए हर दरवाजा खटखटाया, लेकिन उसे हर जगह से दुत्कार ही मिली। संजय का आरोप है कि:
थाना मारहरा: पुलिस ने शिकायत सुनने के बजाय उसे वहां से भगा दिया और कोई मुकदमा दर्ज नहीं किया।
अपर पुलिस अधीक्षक (ASP): पीड़ित जब एएसपी स्वेताभ पांडे के पास गया, तो वहां भी उसे सांत्वना के बजाय यह सुनने को मिला कि "यह हमारा काम नहीं है।" आरोप है कि अधिकारी ने सिर्फ बाइक दिलाने की बात कही, लेकिन बकाया वेतन और दबंगई पर कोई ठोस आदेश नहीं दिया।





