कासगंज (उ०प्र०)
उत्तर प्रदेश रोडवेज के कासगंज डिपो में टिकटों की हेराफेरी और राजस्व नुकसान के आरोप कोई नए नहीं हैं, लेकिन 6 दिसंबर की एक बस यात्रा से जुड़े वीडियो सामने आने के बाद मामला और भी गंभीर हो गया है। आरोप है कि बस में मौजूद वास्तविक सवारियों की संख्या और काटी गई टिकटों के आंकड़ों में बड़ा अंतर था, बावजूद इसके जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई।
यह पूरा मामला अब केवल एक कंडक्टर तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि डिपो के ARM (असिस्टेंट रीजनल मैनेजर), TI (ट्रैफिक इंस्पेक्टर) और RM (रीजनल मैनेजर) की भूमिका पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।
क्या है पूरा मामला?
सूत्रों और सामने आए वीडियो के अनुसार,
6 दिसंबर को कासगंज से दिल्ली जाने वाली एक रोडवेज बस में कुल 53 सवारी मौजूद थीं, लेकिन: कंडक्टर मनोज द्वारा केवल 34 टिकट ही काटी गईं । जांच रिपोर्ट में ARM स्तर पर केवल 2 से 4 सवारियां ही दर्शाई गईं। जबकि वीडियो फुटेज में बस के अंदर यात्रियों की संख्या साफ दिखाई देती है। बस में 12 अतिरिक्त सीटें भी पाई गईं, जो यह संकेत देती हैं कि क्षमता से अधिक या वास्तविक संख्या को छुपाया गया। यह अंतर अपने आप में कई सवाल खड़े करता है।
| वीडियो में क्या दिखा? |
वीडियो फुटेज, जो अब सोशल मीडिया और विभागीय हलकों में चर्चा का विषय बना हुआ है, उसमें: बस के अंदर यात्रियों की स्पष्ट गिनती संभव है । कंडक्टर की टिकट मशीन में कागज़ का टुकड़ा लगा हुआ दिखाई देता है । यात्रियों के बैठे होने और खड़े होने की स्थिति साफ नजर आती है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर सब कुछ सही था, तो टिकट मशीन में कागज़ क्यों लगाया गया?
टिकट मशीन में कागज़ का टुकड़ा तकनीकी खराबी या जानबूझकर किया गया खेल?
परिवहन विभाग के नियमों के अनुसार,
ई-टिकट मशीन में किसी भी तरह की छेड़छाड़ या कागज़ लगाने की अनुमति नहीं होती, क्योंकि:
इससे टिकट प्रिंट प्रभावित होता है।
यात्रियों को टिकट न मिलने की स्थिति बनती है।
राजस्व चोरी की संभावना बढ़ जाती है
ऐसे में सवाल उठता है कि: क्या मशीन खराब थी?
अगर खराब थी, तो बस को संचालन में क्यों लगाया गया?
या फिर टिकट न काटने के लिए यह तरीका अपनाया गया?
इन सवालों का जवाब अभी तक विभाग की ओर से सार्वजनिक रूप से नहीं दिया गया है।
चेक पॉइंट पर बस क्यों नहीं रोकी गई?
एक और गंभीर आरोप यह भी है कि:
बस को किसी भी चेक पॉइंट पर नहीं रोका गया
सामान्य प्रक्रिया के अनुसार लंबी दूरी की बसों को विभिन्न चेकिंग प्वाइंट पर जांचा जाता है। लेकिन इस बस के साथ ऐसा क्यों नहीं हुआ?
क्या यह केवल संयोग था या फिर पूर्व नियोजित अनदेखी?
ARM की भूमिका पर सबसे बड़े सवाल-
इस पूरे प्रकरण में ARM की भूमिका सबसे ज्यादा संदेह के घेरे में है, क्योंकि:
प्रारंभिक जांच और रिपोर्ट ARM स्तर से ही जाती है
वास्तविक सवारियों की संख्या को कम दर्शाया गया
वीडियो साक्ष्य होने के बावजूद कोई सख्त कार्रवाई नहीं की गई
आरोप है कि ARM अपने स्तर पर मामले को दबाने में सफल होते दिखाई दे रहे हैं।
क्या TI और RM भी जिम्मेदार?
परिवहन विभाग के जानकारों का कहना है कि:
TI का काम बसों की नियमित जांच करना है
RM पूरे रीजन की जवाबदेही संभालता है
यदि:
बस में इतनी बड़ी अनियमितता थी , वीडियो मौजूद था , फिर भी कार्रवाई नहीं हुई।
तो यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या TI से लेकर RM तक की जानकारी में यह सब हुआ?
राजस्व को कितना नुकसान?
यदि आरोप सही पाए जाते हैं, तो:
19 यात्रियों की टिकट नहीं काटी गई
औसतन प्रति टिकट ₹250–₹400 मानें
तो एक ही ट्रिप में ₹5,000 से ₹8,000 तक का नुकसान
अगर यही पैटर्न रोज़ाना चलता हो, तो:
महीने में लाखों
और साल में करोड़ों रुपये के राजस्व नुकसान की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता
यात्रियों की सुरक्षा और अधिकार भी सवालों में
यह मामला केवल पैसों का नहीं है, बल्कि:
बिना टिकट यात्री बीमा के दायरे में नहीं आते
दुर्घटना की स्थिति में मुआवजे का अधिकार नहीं मिलता
यह सीधे-सीधे यात्रियों की सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा है
कंडक्टर मनोज की भूमिका
कंडक्टर मनोज पर आरोप है कि:
उसने जानबूझकर सभी यात्रियों की टिकट नहीं काटी
टिकट मशीन का दुरुपयोग किया
विभागीय नियमों का उल्लंघन किया
हालांकि, अब तक उसकी भूमिका की निष्पक्ष जांच सार्वजनिक नहीं हुई है।
कार्रवाई क्यों नहीं?
सबसे बड़ा सवाल यही है कि:
वीडियो मौजूद है
गवाह मौजूद हैं
आंकड़ों में स्पष्ट अंतर है
फिर भी:
न निलंबन
न FIR
न विभागीय जांच की घोषणा
तो क्या यह मामला भी फाइलों में दबा दिया जाएगा?
विशेषज्ञों की राय
परिवहन मामलों के जानकारों का कहना है:
अगर वीडियो साक्ष्य के बावजूद कार्रवाई नहीं होती, तो यह सिस्टम की विफलता नहीं, बल्कि मिलीभगत का संकेत हो सकता है।
जनता की मांग
स्थानीय यात्रियों और सामाजिक संगठनों की मांग है कि:
1. पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच हो
2. ARM, TI और RM की भूमिका की स्वतंत्र जांच की जाए
3. वीडियो को जांच का हिस्सा बनाया जाए
4. दोषी पाए जाने पर कड़ी विभागीय व कानूनी कार्रवाई हो
5. भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों, इसके लिए डिजिटल निगरानी बढ़ाई जाए
कासगंज रोडवेज का यह मामला केवल एक बस या एक दिन की घटना नहीं है।
यह प्रणाली, पारदर्शिता और जवाबदेही से जुड़ा प्रश्न है।
अगर आरोप सही हैं, तो यह सरकारी राजस्व और आम जनता दोनों के साथ धोखा है।
और अगर आरोप गलत हैं, तो स्पष्ट और पारदर्शी जांच से सच्चाई सामने लाई जानी चाहिए।
अब देखना यह है कि
परिवहन विभाग सच के साथ खड़ा होता है या खामोशी के साथ।





