सहावर में जिंदा पेड़ों के कटान का खेल: आरा मशीनों की शोभा बनती हरियाली, सवालों के घेरे में वन विभाग । - Time TV Network

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सहावर में जिंदा पेड़ों के कटान का खेल: आरा मशीनों की शोभा बनती हरियाली, सवालों के घेरे में वन विभाग ।

 

कासगंज (सहावर)।

हरे-भरे पेड़ों की छाया, पक्षियों की चहचहाहट और ग्रामीण जीवन की पहचान—यह सब आज सहावर क्षेत्र में तेजी से सिमटता नजर आ रहा है। स्थानीय लोगों के मुताबिक, जिंदा पेड़ों को काटकर आरा मशीनों की “शोभा” बनाया जा रहा है। मोहनपुर रोड, ब्लॉक के सामने स्थित एक आरा मशीन को लेकर गंभीर आरोप सामने आए हैं। आरोप है कि मशीन स्वामी मुन्ने मियां पुत्र अमीर उल्लाह के यहां जिंदा पेड़ों से प्राप्त लकड़ी बड़ी मात्रा में देखी गई है। यदि निष्पक्ष जांच हो, तो यहां अवैध कटान की सच्चाई सामने आ सकती है—ऐसा स्थानीय नागरिकों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं का दावा है।


यह कोई पहला मामला नहीं है। सहावर और आसपास के क्षेत्रों में लकड़ी कटान की खबरें आए दिन सुर्खियां बनती रही हैं। इसके बावजूद कार्यवाही के नाम पर अक्सर खामोशी ही देखने को मिलती है। सवाल यह है कि आखिर जिम्मेदार अधिकारी संज्ञान क्यों नहीं ले पा रहे? क्या किसी लकड़ी माफिया का दबाव है, या फिर डर,जो कार्यवाही की राह में दीवार बन रहा है?


आरोपों का केंद्र: मोहनपुर रोड स्थित आरा मशीन।

स्थानीय सूत्रों के अनुसार, ब्लॉक के सामने मोहनपुर रोड पर स्थित आरा मशीन पर लंबे समय से गतिविधियां संदिग्ध बताई जा रही हैं। ग्रामीणों का कहना है कि यहां आने वाली लकड़ी का बड़ा हिस्सा जिंदा पेड़ों से काटकर लाया जाता है। कई बार रात के अंधेरे में ट्रैक्टर-ट्रॉलियों के जरिए लकड़ी पहुंचाई जाती है, ताकि किसी की नजर न पड़े। सुबह होते ही मशीनें चलने लगती हैं और लकड़ी के ढेर लग जाते हैं।


ग्रामीणों का यह भी आरोप है कि यदि किसी दिन अचानक जांच हो, तो भारी मात्रा में लकड़ी बरामद की जा सकती है। सवाल यह है कि क्या वन विभाग ने इस आरा मशीन की हाल में जांच की है? अगर की है, तो कब? और अगर नहीं की, तो क्यों?

जांच या लेनदेन , बड़ा सवाल ?

सहावर में यह चर्चा आम है कि कुछ मामलों में जांच महज औपचारिकता बनकर रह जाती है। आरोप यह भी हैं कि “लेनदेन” के जरिए मामलों को रफा-दफा कर दिया जाता है। यदि यह सही है, तो यह न केवल कानून का मजाक है, बल्कि पर्यावरण के खिलाफ खुला अपराध भी।



वन अधिनियम स्पष्ट है—जिंदा पेड़ों का कटान बिना अनुमति अपराध है। लकड़ी की ढुलाई, भंडारण और चिरान के लिए वैध दस्तावेज अनिवार्य हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि इस मशीन की हर कागजी प्रक्रिया-लाइसेंस, रजिस्टर, स्टॉक विवरण, परिवहन पास-वास्तव में पूरी है या नहीं? क्या इन कागजों का स्वतंत्र सत्यापन हुआ है?

बार-बार सामने आते मामले, फिर भी कार्रवाई क्यों नहीं?

सहावर क्षेत्र में लकड़ी कटान के मामले कोई नई बात नहीं हैं। पिछले वर्षों में भी कई बार शिकायतें हुईं, खबरें छपीं, लेकिन स्थायी समाधान नहीं दिखा। कभी-कभार छोटे स्तर पर कार्रवाई होती भी है, तो वह बड़े नेटवर्क तक पहुंचने से पहले ही थम जाती है।


पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक पूरे चेन-कटान करने वालों, परिवहन करने वालों और मशीन संचालकों-पर एकसाथ सख्त कार्रवाई नहीं होगी, तब तक यह धंधा नहीं रुकेगा। केवल एक-दो मजदूरों या ड्राइवरों पर कार्रवाई कर देना समस्या का समाधान नहीं है।

क्या दबाव में है विभाग?

यह सवाल अब खुलकर पूछा जा रहा है कि क्या अधिकारियों पर किसी लकड़ी माफिया का दबाव है? स्थानीय लोग कहते हैं कि शिकायत करने वालों को डराया-धमकाया जाता है। कई लोग खुलकर सामने आने से कतराते हैं, क्योंकि उन्हें अपनी सुरक्षा और रोज़ी-रोटी की चिंता रहती है।


यदि प्रशासन सचमुच निष्पक्ष है, तो शिकायतकर्ताओं की पहचान गोपनीय रखकर कार्रवाई क्यों नहीं की जाती? क्यों नहीं ऐसे मामलों में विशेष टीम बनाकर अचानक छापेमारी होती है?

पर्यावरण पर गंभीर खतरा :-

जिंदा पेड़ों की कटान का सीधा असर पर्यावरण पर पड़ता है। सहावर क्षेत्र पहले ही जलवायु परिवर्तन, भूजल स्तर में गिरावट और बढ़ते तापमान जैसी समस्याओं से जूझ रहा है। यदि यह कटान यूं ही चलता रहा, तो वह दिन दूर नहीं जब सहावर “रेगिस्तान” जैसी स्थिति का सामना करेगा-यह चेतावनी स्थानीय पर्यावरणविद दे रहे हैं।


पेड़ केवल लकड़ी नहीं होते; वे जल संरक्षण, मिट्टी की उर्वरता और जैव विविधता का आधार हैं। एक पेड़ काटना केवल एक अपराध नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के भविष्य से खिलवाड़ है।

कानून क्या कहता है?

भारतीय वन अधिनियम और राज्य के संबंधित नियमों के अनुसार:

● जिंदा पेड़ों का कटान बिना अनुमति दंडनीय अपराध है।

● लकड़ी के परिवहन के लिए वैध पास अनिवार्य है।

● आरा मशीनों को निर्धारित मानकों और लाइसेंस शर्तों का पालन करना होता है।

● स्टॉक रजिस्टर में आने-जाने वाली हर लकड़ी का विवरण दर्ज होना चाहिए।

यदि इनमें से किसी भी नियम का उल्लंघन पाया जाता है, तो मशीन सील की जा सकती है, लाइसेंस निरस्त हो सकता है और जिम्मेदारों पर आपराधिक मुकदमा दर्ज किया जा सकता है।


सवाल जो जवाब मांगते हैं :-

1. क्या मोहनपुर रोड स्थित आरा मशीन की हालिया जांच हुई है?

2. यदि हुई है, तो उसकी रिपोर्ट सार्वजनिक क्यों नहीं की गई?

3. मशीन पर मौजूद लकड़ी का स्रोत क्या है, और उसके वैध दस्तावेज कहां हैं?

4. क्या विभागीय अधिकारियों की जवाबदेही तय की जाएगी?

5. शिकायतों के बावजूद अब तक सख्त कार्यवाही क्यों नहीं हुई?

जनहित में अपेक्षित कार्यवाही :-

स्थानीय नागरिकों और सामाजिक संगठनों की मांग है कि:

स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच कराई जाए।

अचानक छापेमारी कर स्टॉक का भौतिक सत्यापन हो।

सभी दस्तावेजों की डिजिटल और मैनुअल क्रॉस-वेरिफिकेशन की जाए।

दोषी पाए जाने पर कड़ी कानूनी कार्रवाई हो।

शिकायतकर्ताओं को सुरक्षा और गोपनीयता प्रदान की जाए।


निष्कर्ष ;-

सहावर में जिंदा पेड़ों की कटान का यह मामला केवल एक आरा मशीन तक सीमित नहीं दिखता, बल्कि एक बड़े नेटवर्क की ओर इशारा करता है-ऐसा आरोप स्थानीय लोग लगा रहे हैं। यदि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो इसका खामियाजा पर्यावरण, समाज और आने वाली पीढ़ियों को भुगतना पड़ेगा।


अब देखना यह है कि जिम्मेदार विभाग इन गंभीर आरोपों पर कब और कैसे संज्ञान लेता है। क्या सचमुच जांच होगी, या फिर यह मामला भी कागजों और फाइलों में दबकर रह जाएगा? सहावर की हरियाली और भविष्य आज जवाब मांग रहा है।

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