कसगंज से दिल्ली रूट पर चलने वाली रोडवेज़ बसों में राजस्व चोरी का मामला एक बार फिर सुर्खियों में है। सूत्रों के अनुसार, लंबे समय से यहाँ कुछ बस कर्मियों पर यह आरोप लगता रहा है कि वे असली टिकट काटने के बजाय फर्जी या मिसप्रिंटेड टिकट यात्रियों को थमा देते हैं। इससे सरकार को भारी आर्थिक नुकसान पहुँच रहा है और यात्रियों की सुरक्षा पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।
स्थानीय यात्रियों का आरोप है कि यह खेल अचानक नहीं, बल्कि कई सालों से संगठित तरीके से चल रहा है और इसमें विभाग के ही कुछ लोगों की मिलीभगत का संदेह जताया जाता है। यात्रियों का कहना है कि वे अपनी मेहनत की कमाई देकर टिकट तो लेते हैं, लेकिन बदले में उन्हें ऐसा टिकट पकड़ा दिया जाता है जिसमें बारकोड खराब, नंबर गायब या प्रिंट अधूरा होता है। इससे यह पता ही नहीं चलता कि टिकट असली है या नकली।
कैसे चलता है यह खेल?
जाँचकर्ताओं के अनुसार इस कथित फर्जीवाड़े का पूरा सिस्टम समझने पर कई चौंकाने वाली बातें सामने आती हैं।
● कुछ टिकटों को “मिसप्रिंट” बताकर असली टिकट मशीन से अलग किया जाता है
● यात्रियों को अधूरी या पुरानी स्लिप पकड़ाई जाती है
● विभाग के रिकॉर्ड में उन टिकटों का हिसाब ही नहीं होता
● वसूला गया पैसा सीधे जेब में चला जाता है
चूँकि टिकट दिखाने के बाद कोई डिजिटल ट्रैकिंग नहीं, इसलिए पकड़ पाना मुश्किल। वर्तमान में रोडवेज़ विभाग के पास मैनुअल मॉनिटरिंग की व्यवस्था कमजोर है और इसी कमी का फायदा उठाकर ऐसे कथित कर्मचारी सरकारी राजस्व को चूना लगा रहे हैं।
शिकायतें हुईं… पर कार्रवाई क्यों नहीं?
इस मामले में कई बार शिकायतें उच्च अधिकारियों तक पहुँच चुकी हैं। यात्रियों का कहना है कि हर बार बस यही जवाब मिलता है: जांच चल रही है… ARM (इंस्पेक्शन टीम) देख लेगी…परंतु हैरानी की बात यह है कि अभी तक किसी ठोस कार्रवाई की पुष्टि नहीं हुई। लोग सवाल उठा रहे हैं:
क्या विभाग को यह सच्चाई पता नहीं? या फिर अंदर ही कहीं कोई बड़ी ढाल मौजूद है? आखिर किसके डर से कार्रवाई रुकी हुई है?
यात्री परेशान — भरोसा टूटा
प्रतिदिन इस रूट पर हजारों यात्री सफर करते हैं और उन्हें भरोसा होता है कि वे सरकारी बस में यात्रा कर रहे हैं, यानी: टिकट वैध होगा।
● सरकारी राजस्व सुरक्षित रहेगा
●सुरक्षा और नियम मान्य होंगे
लेकिन जब ऐसी घटनाएँ सामने आती हैं तो एक आम नागरिक सरकारी प्रणाली पर से विश्वास खोने लगता है। कई यात्रियों ने बताया: पूरी कीमत चुकाने पर भी सही टिकट नहीं मिलता
शिकायत करो तो उल्टा धमकाया जाता है , जवाब मिलता है — बहुत बोलोगे तो बस से उतार देंगे , ऐसे में यात्री मजबूरी में चुप रहकर यात्रा कर लेते हैं।
कितना बड़ा नुकसान?
आर्थिक जानकारों का मानना है कि यदि एक बस में रोज़ाना 20–40 टिकटों में दिक्कत हो, और यह सिस्टम लगातार महीनों तक चलता रहे तो:-
● नुकसान लाखों में पहुँच सकता है
● राज्य के परिवहन विभाग की आय प्रभावित होती है
● सार्वजनिक सेवा पर जनता का विश्वास कमजोर होता है
कसगंज-दिल्ली जैसा व्यस्त मार्ग इस तरह की कथित धांधली के लिए आदर्श लक्ष्य माना जाता है।
जांच एजेंसियों की जरूरत
विशेषज्ञ चाहते हैं कि यह मामला सिर्फ विभागीय स्तर पर न रहकर:
विजलेंस टीम
लोकायुक्त
राजस्व खुफिया इकाई
जैसे स्वतंत्र निकायों द्वारा जांच की जाए। ताकि: टिकट मशीनों का डिजिटल ऑडिट हो , बारकोड स्कैनिंग व्यवस्था लागू की जाए
दोषियों पर सख्त और सार्वजनिक कार्यवाही हो, यात्रियों की शिकायत का ऑनलाइन रिकॉर्ड बने।
रोकना होगा ये खेल — उठानी होगी आवाज़
यह सिर्फ एक कर्मचारी या एक बस की बात नहीं है
यह मामला पूरी व्यवस्था की पारदर्शिता से जुड़ा है।
कसगंज के जागरूक नागरिक अब चाहते हैं कि जिम्मेदार अधिकारी इस मामले को गंभीरता से लें
शिकायतकर्ताओं को सुरक्षा और जवाब मिले सच्चाई सामने लाने वालों को प्रताड़ित न किया जाए
राजस्व चोरी का यह मामला सिर्फ गबन नहीं —
यह जनता के भरोसे की चोरी है।
अगर ऐसे आरोप सही साबित होते हैं तो
सख्त और उदाहरण बनने वाली कार्रवाई बेहद जरूरी है।
क्योंकि सवाल सिर्फ इतना नहीं कि
यह खेल कब तक चलेगा?
बल्कि इससे भी बड़ा सवाल है
क्या हमारी सरकारी व्यवस्था सच में जनता के हित में काम कर रही है...?






