अतरौली (अलीगढ़)। क्षेत्र में इन दिनों एक कार को लेकर चर्चाओं का दौर जारी है। यह कार Mahindra XUV300, नंबर UP81 CX 0864, जिस पर सामने और पीछे बड़े अक्षरों में ‘न्यायाधीश’ (Judge) लिखा हुआ बताया जा रहा है। स्थानीय लोगों के अनुसार, यह गाड़ी मां शीतला हॉस्पिटल से जुड़े पिंटू नामक व्यक्ति द्वारा चलाई जा रही है। सवाल यह है कि जब वाहन किसी न्यायिक अधिकारी का नहीं है, तब इस पर “न्यायाधीश” लिखना क्या आम लोगों को भ्रमित करने के उद्देश्य से किया गया है?
वाहन पर ऐसे शब्दों का लिखना केवल अनैतिक ही नहीं बल्कि कानूनी रूप से भी प्रतिबंधित है। ऐसे में यह मामला स्थानीय प्रशासन के संज्ञान में आने के बाद गंभीर जांच की मांग को जन्म दे रहा है।
वाहन पर ‘न्यायाधीश’ क्यों लिखा गया? स्थानीय लोग हैरान
अतरौली क्षेत्र में कई दिनों से यह गाड़ी लोगों की नजरों में है। जब क्षेत्रवासियों ने देखा कि गाड़ी को कोई न्यायिक अधिकारी नहीं बल्कि पिंटू नामक व्यक्ति चला रहा है, जो स्थानीय मां शीतला हॉस्पिटल से जुड़ा संचालक बताया जाता है, तो लोगों में संदेह पैदा हुआ।
स्थानीय निवासियों का कहना है कि—
“अगर गाड़ी किसी जज की नहीं है, तो उस पर न्यायाधीश क्यों लिखा गया है? इससे तो आम लोगों में गलत संदेश जाता है और कोई भी इसे देखकर भ्रमित हो सकता है।”
कुछ लोगों ने यह भी आशंका जताई कि कहीं यह “न्यायाधीश” लिखावट किसी अधिकार का गलत उपयोग करने या किसी भी प्रकार के दबाव बनाने का साधन तो नहीं बन रही।
कानून क्या कहता है? ‘जज’ या सरकारी पदनाम लिखना दंडनीय अपराध
भारत में किसी भी वाहन पर सरकारी पदनाम, न्यायिक पद, पुलिस पद, सेना के चिन्ह, या सरकारी प्रतीक लगाने के लिए स्पष्ट नियम हैं।
मोटर व्हीकल एक्ट के अनुसार, किसी वाहन पर झूठे पदनाम, सरकारी पहचान या धोखा देने वाले शब्द लिखना अवैध है।
वाहन किसी जज का न हो और उस पर “न्यायाधीश” लिखा हो, तो यह कानूनी कार्रवाई योग्य अपराध माना जाता है।
ऐसे मामलों में प्रशासन वाहन मालिक के खिलाफ धोखाधड़ी, भ्रामक प्रस्तुति, और वाहन नियमों के उल्लंघन के तहत कार्रवाई कर सकता है।
इसलिए क्षेत्र में चर्चा का विषय यही है कि यदि यह कार किसी न्यायिक अधिकारी की नहीं है, तो ये लिखावट किस उद्देश्य से की गई है?
अतरौली प्रशासन से जांच की मांग:-
स्थानीय नागरिकों का कहना है कि इस मामले की जांच तुरंत होनी चाहिए, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि—
1. क्या वाहन के मालिक या चालक ने जानबूझकर “न्यायाधीश” लिखकर गलत प्रभाव बनाने की कोशिश की?
2. क्या इस कार का उपयोग किसी अनुचित गतिविधि, दबाव, डराने-धमकाने या अवैध कामों के लिए तो नहीं किया जा रहा था?
3. क्या वाहन का पंजीकरण, मालिकाना, और दस्तावेज सही हैं?
4. क्या यह गाड़ी वाकई किसी न्यायिक अधिकारी से किसी प्रकार का संबंध रखती है?
अतरौली में पहले भी कई बार ऐसी घटनाएँ सामने आती रही हैं, जहाँ कुछ लोग सरकारी पदनाम का दुरुपयोग कर जनता में प्रभाव जमाने की कोशिश करते पाए गए। ऐसी स्थितियों में प्रशासन की सतर्कता और भी आवश्यक हो जाती है।
लोगों में बढ़ रही आशंका — “गलत संदेश जा रहा है”
स्थानीय व्यापारियों, राहगीरों और क्षेत्रवासियों का कहना है कि सड़क पर चलती इस कार को देखकर लोग स्वतः ही सोच लेते हैं कि यह वाहन किसी हाई-प्रोफाइल व्यक्ति या जज का है।
एक दुकानदार ने कहा—
“ऐसी गाड़ी देखकर पुलिस भी कई बार रोक-टोक नहीं करती। आम जनता तो सामने आने से भी कतराती है। अगर यह गाड़ी असल में जज की नहीं है, तो ये कई स्तर पर गलत है।”
कई लोग इस बात को लेकर चिंतित हैं कि—
इस तरह की झूठी पहचान का फायदा उठाकर कोई भी चेकिंग से बच सकता है,
आम लोगों पर दबाव बनाया जा सकता है, या फिर अवैध काम भी आसानी से किए जा सकते हैं।
हालांकि अभी तक किसी अवैध काम का प्रमाण सामने नहीं आया, लेकिन वाहन की लिखावट को देखकर संदेह बढ़ना स्वाभाविक है।
मां शीतला हॉस्पिटल का नाम भी चर्चा में
यह बात भी सामने आई है कि गाड़ी चलाने वाला व्यक्ति मां शीतला हॉस्पिटल का संचालक बताया जाता है।
पिछले कुछ समय से इस हॉस्पिटल से जुड़े मामलों पर भी स्थानीय लोगों ने कई सवाल उठाए हैं।
ऐसे में एक और विवादित मुद्दे का सामने आना लोगों में असंतोष बढ़ाने वाला है। कई नागरिकों का कहना है कि
“अगर कोई अस्पताल संचालक जज लिखी गाड़ी का उपयोग कर रहा है, तो इसकी जांच प्रशासन को जरूर करनी चाहिए।”
प्रशासन कठोर कदम उठाए तो खत्म होगा भ्रम और दुरुपयोग
विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे मामलों में प्रशासन को निम्न कदम उठाने चाहिए—
वाहन की RC (पंजीकरण) की जांच
गाड़ी चलाने वाले व्यक्ति की पहचान और पद की पुष्टि
वाहन पर “न्यायाधीश” लेख के स्रोत का पता
यदि गलत पाया जाए, तो तुरंत जुर्माना और कानूनी कार्रवाई
वाहन से भ्रामक लिखावट हटवाई जाए
सख्त कदमों से ही ऐसी झूठी पहचान के दुरुपयोग को रोका जा सकता है।
क्या कोई गलत काम का अंदेशा? जांच से ही सच सामने आएगा
हालांकि अब तक कोई प्रमाणित रिपोर्ट नहीं कि इस कार से कोई गलत काम किया गया है, लेकिन—
झूठा पदनाम,
जज के नाम का उपयोग,
प्रशासनिक भ्रम पैदा करना
अपने आप में गंभीर मुद्दे हैं।
अतरौली के कई लोगों ने यह आशंका भी जताई कि इस प्रकार की गाड़ियों का उपयोग अक्सर पुलिस चेकिंग, प्रशासनिक कार्रवाई या सामाजिक दबाव से बचने के लिए किया जाता है।
इसलिए आवश्यक है कि प्रशासन तुरंत हस्तक्षेप करे और पारदर्शी जांच करे।
Mahindra XUV300 नंबर UP81 CX 0864 पर “न्यायाधीश” लिखे होने का मामला अब अतरौली में बड़ा मुद्दा बन गया है।
निष्कर्ष — क्षेत्र में चर्चा का विषय बनी कार, जांच जरूरी
स्थानीय लोग स्पष्ट रूप से मांग कर रहे हैं कि—
गाड़ी के मालिकाना हक,
लिखावट का उद्देश्य,
और उपयोग
इन सभी की गहन जांच होनी चाहिए।
ऐसी घटनाएँ लोगों में गलत संदेश फैलाती हैं और न्याय व्यवस्था की गरिमा को भी ठेस पहुँचाती हैं। इसलिए जरूरी है कि अतरौली प्रशासन इस मामले को गंभीरता से ले और सच्चाई उजागर करे।



