कासगंज।
जिले में मिट्टी के अवैध खनन का खेल किसी खुले रहस्य की तरह चल रहा है। नियमों के मुताबिक जहां सीमित क्षेत्र और तय मात्रा में ही खनन की अनुमति दी जाती है, वहीं हकीकत यह है कि “थोड़ी परमिशन लेकर कई गुना ज्यादा मिट्टी निकाल ली जाती है”—यह आरोप न सिर्फ ग्रामीणों का है, बल्कि स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं की शिकायतों में भी बार-बार सामने आया है। सवाल यह है कि जब अवैध खनन इतनी खुली गतिविधि बन चुका है, तो जिले के जिम्मेदार विभाग इसे रोक क्यों नहीं पा रहे?
कासगंज के कई इलाकों—सहावर, पटियाली, सोरों, गंजडुंडवारा और देहात क्षेत्र—में यह समस्या लंबे समय से बनी हुई है। ग्रामीणों का कहना है कि रात के समय ट्रैक्टर-ट्रॉली और जेसीबी मशीनों के जरिए बड़े पैमाने पर मिट्टी निकाली जाती है। वहीं इलाके के भू-स्वामियों और खेत मालिकों का है कि अवैध खनन से उनकी जमीन की उपजाऊ परत नष्ट हो रही है, जिससे खेती पर गंभीर असर पड़ रहा है।
परमिशन 500 घनमीटर की, निकासी 2,000 घनमीटर तक? ग्रामीणों के आरोप गंभीर
जिला प्रशासन द्वारा दी जाने वाली खनन परमिशन अक्सर सीमित क्षेत्र और सीमित मात्रा में होती है। लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि असली खनन “कागज़ों में नहीं, ज़मीन पर” दिखता है।
स्थानीय निवासी बताते हैं:
कागज़ों में 500–700 घनमीटर की परमिशन होती है, पर मौके पर 2,000–3,000 घनमीटर तक मिट्टी निकाल ली जाती है। ट्रैक्टरों की कतारें पूरी रात चलती रहती हैं।”
जब उनसे पूछा गया कि इतनी बड़ी मशीनरी और ट्रैक्टरों का मूवमेंट किसी अधिकारी की नज़र में क्यों नहीं आता, तो जवाब मिलता है:
“सबको पता होता है, पर रकम के आगे किसकी चलती है। रोकने की मंशा हो तो खनन एक दिन में बंद हो जाए।”
ग्रामीणों का दावा है कि यह गोरखधंधा कोई छिपी हुई गतिविधि नहीं है। यह सब मुख्य सड़कों, गांव के रास्तों और खेतों के अंदर खुलेआम चलता है। कई जगहों पर मिट्टी के गहरे गड्ढे साफ दिखाई देते हैं, जिससे दुर्घटनाओं का खतरा भी बढ़ रहा है।
जमीन का असंतुलन और किसानों की दशा बिगड़ती
मिट्टी का अंधाधुंध खनन सिर्फ सरकारी नियमों का उल्लंघन नहीं, बल्कि पर्यावरण और कृषि दोनों पर सीधा हमला है। विशेषज्ञ बताते हैं कि उपजाऊ मिट्टी की ऊपरी परत (Top Soil) हटने से जमीन की उर्वरता तेजी से घटती है। इससे फसल उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
कासगंज क्षेत्र के किसानों का कहना है:
पहले जहां गेंहू और बाजरा की अच्छी पैदावार होती थी, अब उसी खेत में उत्पादन घट रहा है।
मिट्टी के गहरे गड्ढे खेत की संरचना बिगाड़ देते हैं।
बारिश में ये गड्ढे पानी से भर जाते हैं, जिससे जानवरों व राहगीरों के गिरने का खतरा रहता है।
कई खेतों में पानी भरने की समस्या और मिट्टी कटान बढ़ गया है।
किसी किसान ने नाराजगी जताते हुए कहा:
“हमने अफसरों को कई बार बताया कि हमारी जमीन खराब हो रही है, लेकिन खनन बंद करने की अदाईगी सिर्फ कागज़ों तक ही सीमित रहती है। जमीन हमारी बर्बाद होती है, मुनाफा किसी और की जेब में जाता है।”
खनन माफिया और अधिकारी—संगठन की बातें, आरोपों का दायरा बड़ा
यह कहना आसान नहीं कि कौन जिम्मेदार है और कौन नहीं, लेकिन इतना साफ है कि इतने बड़े पैमाने पर खनन बिना सिस्टम की अनदेखी के संभव नहीं। ग्रामीणों का आरोप है कि:
खनन की सूचना देने के बाद भी मौके पर कार्रवाई देर से पहुंचती है।
कई बार अधिकारी मौके पर आते भी हैं, तो खनन मशीनें हट चुकी होती हैं।
रात के समय खनन सबसे ज्यादा होता है, लेकिन मॉनिटरिंग नहीं होती।
कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बताया:
जब खनन की शिकायत की जाती है, तो जांच शुरू जरूर होती है, लेकिन बिना परिणाम के खत्म हो जाती है। कार्रवाई कागजी होती है, मौके पर खनन जस का तस चलता रहता है।”
ऐसे आरोपों से यह सवाल खड़ा होता है—क्या वाकई खनन माफिया और कुछ अधिकारियों के बीच गठजोड़ है? ग्रामीणों का यही दावा है, लेकिन इसकी पुष्टि या खंडन प्रशासन की जांच से ही संभव है। हालांकि यह सच है कि जब समस्या वर्षों से कायम है, तो इसकी जड़ें कहीं न कहीं प्रशासनिक उदासीनता से जरूर जुड़ती दिखती हैं।
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम और खनन नियमों का सीधा उल्लंघन
मिट्टी खनन के लिए भारत में कई कानून लागू हैं, जिनमें शामिल हैं:
माइनिंग नियमावली 1967
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 379 (चोरी) और 447 (अवैध प्रवेश)
डीएम/एसडीएम द्वारा निर्धारित स्थानीय नियम
इन कानूनों के मुताबिक:
बिना अनुमति खनन पूर्णत: प्रतिबंधित है।
अनुमति के बाद भी तय मात्रा से अधिक खनन अपराध है।
खनन स्थल की सुरक्षा, गहराई, दूरी और स्थल परिवर्तन नियमबद्ध है।
हर ट्रैक्टर/ट्रॉली की चालान पर्ची (Transit Pass) अनिवार्य है।
लेकिन कासगंज में इन नियमों का पालन बड़े पैमाने पर नज़रअंदाज होता दिखाई देता है। कई ट्रैक्टर बिना नंबर प्लेट, बिना कागज़ और बिना रॉयल्टी स्लिप के घूमते देखे जाते हैं।
वसूली का खेल—कितना सच, कितनी कहानी?
ग्रामीणों का दावा है कि अवैध खनन सिर्फ मिट्टी बेचने का खेल नहीं, बल्कि वसूली का भी बड़ा नेटवर्क है। आरोप है कि:
ट्रैक्टर-ट्रॉली चलवाने के लिए “सेटिंग” करनी पड़ती है।
कुछ जगहों पर प्रति ट्रॉली तय रकम ली जाती है।
अधिकारी स्तर पर “नजराना” की अफवाहें भी फैली रहती हैं।
हालांकि इन आरोपों की आधिकारिक पुष्टि नहीं की जा सकती, लेकिन लोगों की शिकायतें लगातार सामने आ रही हैं। यह दिखाता है कि जनता के मन में सिस्टम को लेकर अविश्वास बढ़ता जा रहा है।
जवाबदेही कौन ले? प्रशासन के पास जवाब कम, जांच ज्यादा
जब भी अवैध खनन का मुद्दा सामने आता है, जिला प्रशासन द्वारा जांच टीम बना दी जाती है, लेकिन परिणाम अक्सर अस्पष्ट रहते हैं। कई बार कार्रवाई के नाम पर:
एक-दो ट्रैक्टर जब्त कर लिए जाते हैं
मामूली चालान किया जाता है
कुछ दिनों तक खनन धीमा पड़ता है
फिर दोबारा वही हालात
इससे यह धारणा और मजबूत होती है कि कार्रवाई सिर्फ दिखावे के लिए होती है, वास्तविक समाधान के लिए नहीं।
लोगों की मांग—सख्त निगरानी, GPS मॉनिटरिंग और रियल-टाइम ट्रैकिंग
ग्रामीणों और सामाजिक संगठनों ने प्रशासन से कई सुझाव भी रखे हैं:
1. खनन वाहनों पर GPS लगाना अनिवार्य किया जाए।
2. नाइट पेट्रोलिंग बढ़ाई जाए।
3. अनुमति क्षेत्र की सैटेलाइट मैपिंग से जांच हो।
4. हर परमिशन की पब्लिक लिस्ट जारी की जाए।
5. अवैध खनन पर FIR व मशीन/वाहन की तत्काल जब्ती हो।
6. स्थानीय शिकायतकर्ताओं को सुरक्षा और पहचान गोपनीयता मिले।
यदि ऐसे कदम उठाए जाएं, तो अवैध खनन पर बड़ा लगाम लगाया जा सकता है।
कब रुकेगा यह खनन? सबसे बड़ा सवाल यहीं है
कासगंज के लोग पूछ रहे हैं:
“आखिर कब तक इसी तरह से खनन होता रहेगा?
कब तक जमीन खोदी जाएगी?
कब तक अधिकारी आंखें मूंदे रहेंगे?”
आज जरूरत है कि जिला प्रशासन इस मुद्दे को गंभीरता से ले, क्योंकि यह सिर्फ मिट्टी का सवाल नहीं—यह पर्यावरण, कृषि, किसानों की आजीविका, सरकारी राजस्व और कानून व्यवस्था का सवाल है।
अगर कार्रवाई आज नहीं हुई, तो आने वाले वर्षों में कासगंज की धरती पर खतरनाक परिणाम देखने पड़ सकते हैं। जमीन की उर्वरता घटेगी, जलस्रोत प्रभावित होंगे और ग्रामीण अर्थव्यवस्था कमजोर होगी।
निष्कर्ष
कासगंज जिले में अवैध मिट्टी खनन किसी छोटी-मोटी समस्या का नाम नहीं, बल्कि एक बड़े नेटवर्क, प्रशासनिक चुप्पी और आर्थिक लालच का परिणाम है। जब तक सख्ती नहीं होगी, जब तक पारदर्शिता नहीं आएगी और जब तक खनन में शामिल लोगों पर कड़ी कार्रवाई नहीं होगी—तब तक यह खेल बंद होना मुश्किल है।
जिले के लोग जवाब मांग रहे हैं, और अब बारी प्रशासन की है कि वह कितना ईमानदार होकर इस समस्या की जड़ काटता है।




