सहावर में लकड़ी कटान का ‘काला कारोबार’ … शिकायतों के बावजूद विभाग मौन—मशीनों पर भरी लकड़ियों ने खड़े किए कई सवाल** - Time TV Network

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सहावर में लकड़ी कटान का ‘काला कारोबार’ … शिकायतों के बावजूद विभाग मौन—मशीनों पर भरी लकड़ियों ने खड़े किए कई सवाल**

सहावर (कासगंज) — क्षेत्र में अवैध लकड़ी कटान का मुद्दा एक बार फिर सुर्खियों में है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि सहावर में कई लकड़ी मशीनों पर प्रतिदिन भारी मात्रा में पेड़ों की कटाई और चिराई हो रही है, लेकिन विभागीय निगरानी और कार्रवाई का अभाव इस पूरे मामले को संदिग्ध बना रहा है।


ग्रामीणों का कहना है कि पिछले कई महीनों से लगातार शिकायतें की जा रही हैं, मगर न तो मशीनों की जांच हो रही है और न ही हरे पेड़ों के कटान को रोकने के लिए कोई ठोस कदम उठाया गया है। इससे यह सवाल तेजी से उठ रहा है कि—“क्या विभाग उदासीन है, या फिर कहीं न कहीं मिलीभगत की बू आ रही है?”

स्थानीय लोगों व ग्रामीणों के द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार  सहावर की मशीनों पर रात में अबैध लकड़ी का कटान होकर आता है। रात में लकड़ी कटान की सलाह लकड़ी कारोबारियों को बनबिभाग के ही कुछ कर्मचारियों द्वारा दी गई है।



स्थानीय लोगों का कहना है कि इन मशीनों पर दिन-रात लकड़ी का ढेर दिखाई देता है, जबकि किसी भी मशीन का निरीक्षण महीनों से नहीं हुआ। ग्रामीणों का दावा है कि “अगर इन मशीनों की अचानक जांच कराई जाए तो कई सच सामने आ सकते हैं।”


सवालों के घेरे में वन विभाग—आखिर जांच क्यों नहीं?

सहावर क्षेत्र में बढ़ती कटान की शिकायतों ने विभागीय अधिकारियों  पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। ग्रामीणों के मुताबिक—

मशीनों पर लकड़ी का लगातार आना-जाना जारी है।

वन विभाग के कर्मचारी मौके पर नहीं पहुंचते।

हरे-भरे पेड़ों को रोगग्रस्त दिखाकर कटान की परमिशन दिलाई जा रही है।

सैकड़ों पेड़ों के कटान के बावजूद कोई बड़ा ऐक्शन सामने नहीं आया।

ग्रामीण यही नहीं रुकते, कई लोग यह भी कहते हैं कि:

इतनी शिकायतों के बाद भी कोई कार्रवाई न होना अपने-आप में बहुत बड़ा सवाल है। क्या बिना संरक्षण या सहयोग के इतनी बड़ी मात्रा में कटान संभव है?”


हालांकि, विभाग की ओर से अभी तक इस मुद्दे पर कोई आधिकारिक स्पष्टीकरण नहीं आया है।

हरियाली का सफाया: पर्यावरण पर बढ़ता खतरा

सहावर कस्बा और आस-पास का ग्रामीण क्षेत्र हरियाली और पुराने पेड़ों के लिए जाना जाता रहा है। लेकिन लगातार कटान ने इसके पर्यावरणीय संतुलन को खतरे में डाल दिया है।

विशेषज्ञों के अनुसार:

• बेतहाशा कटान से तापमान बढ़ता है

• भू-जल स्तर गिरने लगता है

• बारिश का पैटर्न प्रभावित होता है

• स्थानीय जैव विविधता पर खतरा बढ़ता है

स्थानीय पर्यावरण प्रेमी बताते हैं कि यदि स्थिति ऐसे ही रही, तो आने वाले वर्षों में यह क्षेत्र पेड़ों से लगभग खाली हो सकता है।


कटान माफिया और परमिशन का खेल?

कई ग्रामीणों का आरोप है कि हरे पेड़ों को “सूखा” या “बीमार” दिखाकर परमिशन लेना एक आम खेल बन चुका है। हालांकि, इन आरोपों की पुष्टि स्वतंत्र रूप से नहीं हो सकी है, लेकिन इस तरह की शिकायतें लगातार बढ़ रही हैं।

ग्रामीणों की शिकायतें कुछ इस प्रकार हैं—

“पेड़ बिल्कुल हरा-भरा होता है, फिर भी उसे काट दिया जाता है।”

“परमिशन की आड़ में धड़ल्ले से कटान चल रहा है।”

“मशीन मालिक दस्तावेज दिखा देते हैं और विभाग जांच तक नहीं करता।”

एक स्थानीय निवासी का कहना है,

अगर विभाग सिर्फ एक दिन भी औचक निरीक्षण करे, तो असली स्थिति सामने आ जाएगी। लेकिन विभाग मौन है—और यही सबसे बड़ा संदेह है।”

जनता पूछ रही—आखिर ये लकड़ियाँ आती कहाँ से हैं?

मशीनों पर रोज जमा होने वाली लकड़ियों का स्रोत भी एक बड़ा सवाल है।

अगर सब लकड़ी ‘परमिशनशुदा’ है, तो:

इतने बड़े स्तर पर परमिशन किसने जारी की?

किसने पेड़ों की जांच की?

किस आधार पर पेड़ों को रोगग्रस्त घोषित किया गया?

और यदि परमिशन नहीं है, तो फिर यह कटान किसके संरक्षण में हो रहा है?

यहां तक कि कई ग्रामीणों ने कहा कि “कई पेड़ रात के अंधेरे में काटे जाते हैं”—हालांकि इन दावों की भी आधिकारिक पुष्टि नहीं है।

विभाग की जिम्मेदारी: क्या वाकई निभाई जा रही है?

वन विभाग का मूल दायित्व है—

1. अवैध कटान रोकना

2. मशीनों का नियमित निरीक्षण

3. पेड़ों की वास्तविक स्थिति की जांच

4. हरा-भरा क्षेत्र संरक्षित रखना

यदि सहावर क्षेत्र में इतनी शिकायतें की गई हैं, तो फिर सवाल उठना स्वाभाविक है कि—

क्या विभाग ने अब तक कोई औपचारिक जांच की?

क्या मशीनों का रिकॉर्ड चेक हुआ?

क्या परमिशन फाइलें वेरिफाई की गईं?

क्या स्थानीय रेंज अधिकारी मौके पर गए?

अब तक इन सवालों के जवाब न मिलने से ही पूरे क्षेत्र में असंतोष फैल रहा है।

स्थानीय लोगों की मांग—“तुरंत उच्चस्तरीय जांच कराई जाए”

क्षेत्र के कई ग्रामवासियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और पर्यावरण प्रेमियों ने मांग की है कि:

मशीनों की औचक जांच हो

हर परमिशन की वेरिफिकेशन की जाए

हरे पेड़ों के कटान पर तत्काल रोक लगे

यदि कहीं भ्रष्टाचार पाया जाए, तो कड़ी कार्रवाई हो

कई लोगों का कहना है कि यदि विभाग गंभीरता नहीं दिखाता, तो वे उच्च अधिकारियों, मंडल स्तर या सीधे शासन तक शिकायत पहुंचाएंगे।




निष्कर्ष: सहावर को राहत कब मिलेगी?

सहावर में चल रहा कटान किसी एक परिवार या गांव की समस्या नहीं है—यह पूरे इलाके के पर्यावरण, जलवायु और भविष्य के लिए बड़ा खतरा बन चुका है।

जब मशीनों पर लकड़ी का ढेर दिखता है, जब पेड़ गायब मिलते हैं, जब शिकायतें लगातार होती हैं—तो यह सवाल उठना बिल्कुल स्वाभाविक है कि “कार्रवाई आखिर कब होगी?”

लोगों की मांग साफ है—

निष्पक्ष जांच, पारदर्शिता, और हरे पेड़ों की तत्काल सुरक्षा।

अब देखना यह है कि विभाग जागता है या फिर शिकायतों की यह गूंज यूँ ही हवा में गुम हो जाएगी।

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