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Etah - मिरहची में प्रतिबंधित लकड़ी का धड़ल्ले से चिरान? स्थानीय लोगों के आरोपों ने खड़ा किया बड़ा सवाल

 एटा जिले के मिरहची क्षेत्र में अवैध लकड़ी कटान और चिरान का एक बड़ा मामला सामने आने की आशंका जताई जा रही है। स्थानीय लोगों का दावा है कि मिरहची ब्लॉक के ठीक सामने मारहरा रोड पर स्थित एक मशीन, जिसके मालिक डॉ. राजेन्द्र नाथ बताए जा रहे हैं और चालक के रूप में सुधीश पंडित का नाम आ रहा है, वहां पर लगातार प्रतिबंधित प्रजातियों की लकड़ी का अवैध चिरान किया जा रहा है।


लोगों की माने तो यहां आने वाली लकड़ी में नीम, आम, जामुन, गूलर, पीपल आदि जैसी प्रजातियाँ शामिल हैं—ये वे पेड़ हैं जिनके कटान पर कड़ी शर्तें लागू रहती हैं और बिना विभागीय अनुमति एक इंच कटान भी अपराध माना जाता है। लेकिन जमीन पर स्थिति इसके उलट दिखाई दे रही है।


स्थानीय लोगों का आरोप: “ट्रैक्टरों से रात-दिन पहुंच रही है लकड़ी”

मिरहची क्षेत्र में रहने वाले कई लोगों ने बताया कि मशीन पर नियमित रूप से लकड़ी से लदे वाहन पहुंचते देखे जाते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि: लकड़ी अक्सर रात में या सुबह-सुबह लाई जाती है। लकड़ी की प्रजातियाँ देखते ही समझ आ जाता है कि अधिकांश परमिट के दायरे में नहीं आतीं । कई ट्रैक्टरों के पास कोई परमिट पेपर नहीं होता । ग्रामीणों का दावा है कि शिकायत करने के बावजूद कार्रवाई नहीं होती। इससे यह आशंका बढ़ रही है कि कहीं न कहीं इस पूरे खेल में कुछ जिम्मेदार लोग भी शामिल हो सकते हैं।


सबसे बड़ा सवाल – आखिर इतनी प्रतिबंधित लकड़ी आ कहाँ से रही है?

यदि मशीन पर लगातार प्रतिबंधित और स्वस्थ पेड़ों की लकड़ी पहुंच रही है, तो ऐसे में यह प्राकृतिक है कि जनता यह पूछे कि:

1. क्या आसपास के गांवों में बड़े पैमाने पर अवैध कटान चल रहा है?

मारहरा—मिरहची—जलेसर—निधौली बेल्ट में कई बार अवैध कटान की शिकायतें उठ चुकी हैं। यदि लकड़ी इसी क्षेत्र से आ रही है, तो यह एक बड़े नेटवर्क की ओर संकेत करता है।


2. क्या कटान को ‘बीमार पेड़’ बताकर परमिशन लिया जा रहा है?

कई स्थानीय लोगों का आरोप है कि स्वस्थ पेड़ों को “रोगग्रस्त” दिखाकर परमिशन हासिल करने का खेल वर्षों से चलता आया है। लकड़ी की इन प्रजातियों को देखकर यह सवाल और भी मजबूती से उठ रहा है।


3. क्या कुछ विभागीय लोगों की मिलीभगत बिना यह संभव है?

यह जनता का आरोप है—साबित तथ्य नहीं—लेकिन लोगों की चिंता है कि जब इतनी बड़ी मात्रा में प्रतिबंधित लकड़ी मशीन तक पहुंच रही है, तो इसकी जानकारी संबंधित विभाग को कैसे नहीं होती? लोगों का कहना है कि यह संभव है कि कुछ लोग 'सहारा' देकर यह पूरा धंधा चला रहे हों।


मशीन पर लकड़ी की आवाजाही पर किसी की नजर क्यों नहीं?

मिरहची ब्लॉक के सामने स्थापित मशीन कोई छुपी हुई जगह नहीं है। यह मुख्य सड़क पर है। आवाजाही सबकी नजर में होती है ।इसके बावजूद कार्रवाई का न होना स्थानीय लोगों के मन में शंका पैदा कर रहा है।



कुछ ग्रामीणों का कहना है कि,,,

अगर ये सब काम बिना किसी संरक्षण या समर्थन के हो रहा होता, तो अब तक कई बार कार्रवाई हो चुकी होती।”

वन विभाग पर उठ रहे सवाल:-

वन विभाग का काम है कि: 

• पेड़ों का सर्वे करें

• परमिशन को सही तरीके से जारी करें

• अवैध कटान पर तुरंत रोक लगाएं

• चिरान मशीनों की नियमित जांच करें

लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि विभाग की ओर से इस मशीन पर कभी कोई कड़ी कार्रवाई नजर नहीं आई।

कई लोग यह आरोप भी लगा रहे हैं कि:

कुछ विभागीय कर्मचारी ही इस खेल को खुली छूट दे रहे हैं। हालांकि इन आरोपों की प्रशासनिक स्तर पर पुष्टि नहीं हुई है। 

अवैध चिरान और कटान का पर्यावरणीय खतरा:-

प्रतिबंधित प्रजातियों के पेड़ों का कटान केवल अवैध ही नहीं, बल्कि पर्यावरण के लिए खतरा भी है।

इन पेड़ों के कटने से:

• भू-जल स्तर गिरता है

• गर्मी और बढ़ती है

• पक्षियों और वन्य जीवों का प्राकृतिक घर खत्म होता है

• गांवों का प्राकृतिक संतुलन बिगड़ता है


नीम, पीपल और गूलर जैसे पेड़ तो प्राकृतिक औषधियाँ और पर्यावरण संतुलन के लिए बेहद महत्वपूर्ण माने जाते हैं। ऐसे पेड़ों के कटान को किसी भी तरह गलत ही माना जाता है।


प्रशासन से उठ रही कार्रवाई की मांग

स्थानीय ग्रामीणों ने जिला प्रशासन और वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों से मांग की है कि:

1. मशीन पर तुरंत छापेमारी हो

2. लकड़ी के रिकॉर्ड, परमिट, और इनवॉइस की जांच की जाए

3. पिछले 6 महीनों में मशीन पर कितनी लकड़ी आई—इसकी जांच हो

4. लॉग बुक और परमिट की तुलना की जाए

5. अवैध लकड़ी लाने वाले वाहनों को ट्रेस कर कार्रवाई हो

लोगों की मांग है कि यदि जांच ईमानदारी से की जाए, तो सारा खेल कुछ ही दिनों में सामने आ सकता है।


जनता कहती है — “हमें विकास नहीं, हरे भरे पेड़ों रहित जंगल चाहिए”

आज जब धरती का तापमान बढ़ रहा है, पानी सूख रहा है, और गाँवों में सर्दी-गर्मी का संतुलन बदल रहा है, तब पेड़ों का संरक्षण बेहद जरूरी है।

मिरहची के कई युवा पर्यावरण प्रेमियों का कहना है:

पेड़ गांव की पहचान हैं। कटान रुकना चाहिए। मशीन किसी को नुकसान न पहुंचाए—हमारी यही मांग है।”

जवाबदेही जरूरी – नहीं तो जंगल खत्म और धंधा जारी।

मामला छोटा नहीं है।

अगर आरोप सही पाए गए तो यह सिर्फ एक मशीन का मुद्दा नहीं रहेगा, बल्कि पूरे बेल्ट में चल रहे अवैध कटान नेटवर्क को उजागर कर सकता है।

अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि—

क्या वन विभाग एक्शन लेगा, या फिर यह मामला भी फाइलों और चुप्पी में दफ्न हो जाएगा?

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