मारहरा ,मिरहची पेड़ कटान कांड — अब उठी जांच की मांग, वन विभाग सवालों के घेरे में। - Time TV Network

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मारहरा ,मिरहची पेड़ कटान कांड — अब उठी जांच की मांग, वन विभाग सवालों के घेरे में।

जनपद एटा

 एटा ज़िले के कई क्षेत्र में हरे-भरे पेड़ों के अवैध कटान का मामला अब तूल पकड़ चुका है। स्थानीय लोगों के विरोध और मीडिया रिपोर्टिंग के बाद जिला प्रशासन हरकत में आया है। अब सवाल यह है कि आखिर इतने बड़े पैमाने पर कटान हुआ तो विभाग को पता कैसे नहीं चला — या फिर उसने जानबूझकर आंखें मूंद लीं?



जांच की मांग तेज़:-

जनपद एटा भी हरे पेड़ों के कटान के मामले में सुर्खियों में है जहां कई क्षेत्रों में कटान स्तर बढ़ता नजर आता है , मिरहची, मारहरा,शीतलपुर ,निधौली, जलेसर अन्य किसी भी क्षेत की बात कर लो जांच में सब पता चल जाएगा कि कहाँ कितना कटान हुआ है और मिरहची,मारहरा के तो आस-पास के गांवों में ग्रामीणों ने जिला प्रशासन से लिखित शिकायतें भी दी हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि वन विभाग ने कुछ ठेकेदारों को हरे और स्वस्थ पेड़ों को “बीमार” दिखाकर काटने की अनुमति दी। जिस पर ठेकेदारों ने 40 पेड़ों की अनुमाति पर 400 पेड़ तक काटे थे। जिसकी शिकायत भी हुई थी लेकिन कहते है कि अल्लाह मेहरवान तो ग..... पहलवान । जब ठेकेदारों पर संरक्षण प्राप्त हो तो कोई क्या कर सकता है। 

ग्रामीणों का सवाल- आखिर एक साथ सैकड़ों हरे भरे पेड़  बीमार कैसे हो सकते हैं......?

स्थानीय सामाजिक संस्था “हरित प्रहरी मंच” ने भी जिला मुख्यालय पर ज्ञापन सौंपकर कहा है — मारहरा में पिछले छह महीनों से बड़े पैमाने पर हरियाली का सफाया हो रहा है। विभाग की मिलीभगत के बिना इतनी लकड़ी कैसे कट सकती है?”


वन विभाग की सफाई:- 

जब मीडिया ने सवाल उठाए तो वन विभाग ने अपने बयान में कहा — कटाई की अनुमति केवल सूखे और गिरे पेड़ों के लिए दी गई थी। यदि किसी ने गलत तरीके से हरे पेड़ काटे हैं तो कार्रवाई की जाएगी।” लेकिन इस बयान से जनता संतुष्ट नहीं है, क्योंकि जनता को बनबिभाग का यह बयान जुमलेबाजी की तरह लगा। लोगों का कहना है कि विभाग की टीम मौके पर कभी पहुंचती ही नहीं, रिपोर्ट सिर्फ़ कागज़ों पर तैयार की जाती है।

स्थानीय विज़ुअल्स ने खोला राज़:-

हमारी टीम ने मौके पर जाकर पाया कि जिन पेड़ों को “सूखा” बताया गया था, वो पूरी तरह से हरे भरे और फल-फूल से लदे हुए थे। कटान के निशान बताते हैं कि यह काम पेशेवर तरीके से किया गया - भारी आरी मशीनों और ट्रैक्टर-ट्रॉली से लकड़ी को रातों-रात निकाला गया। पास के ग्रामीणों ने बताया कि रात में ट्रैक्टर आते हैं, लकड़ी लादकर चले जाते हैं। सुबह जब सूरज निकलता है तो बस ठूंठ बचे रहते हैं…”

लकड़ी माफिया और भ्रष्टाचार का खेल:-

सूत्रों के मुताबिक, इस पूरे खेल में लाखों रुपए का कारोबार छिपा है। सागौन, शीशम, जामुन ,आम ,नीम जैसी कीमती लकड़ियों को बाहर भेजा जा रहा है। हर पेड़ पर 03–04 हज़ार रुपये की दलाली बताई जाती है। कुछ विभागीय कर्मचारियों और ठेकेदारों के बीच सेटिंग होने के आरोप भी सामने आए हैं। पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह सिर्फ़ आर्थिक अपराध ही नहीं, बल्कि “प्राकृतिक अपराध” है — जिसका असर आने वाली पीढ़ियों तक पड़ेगा।


रेगिस्तान बनने की चेतावनी:-

विशेषज्ञों के अनुसार, अगर यह कटान नहीं रुका तो अगले पाँच से दस वर्षों में मारहरा क्षेत्र की मिट्टी अपनी नमी खो देगा, भू-जल स्तर नीचे जाएगा और फसलों की उत्पादकता घटेगी। हर पेड़ लगभग 20 किलो ऑक्सीजन देता है — जिसके कटने से न सिर्फ पर्यावरण बल्कि स्वास्थ्य पर भी असर पड़ेगा।

जनता की उम्मीदें:-

ग्रामीण अब उम्मीद लगाए बैठे हैं कि इस बार जांच कागज़ों में नहीं, ज़मीन पर होगी। लोग चाहते हैं कि हरे पेड़ों की सुरक्षा के लिए प्रत्येक गांव में निगरानी समिति बनाई जाए, कटान पर पूर्ण प्रतिबंध लगे, और जो पेड़ काटे गए हैं, उनकी जगह दो गुने पेड़ लगाए जाएँ तब कहीं तक पर्यावरण पर पर अंकुश लग सकता है।

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