कासगंज।
कासगंज रोडवेज डिपो एक बार फिर गंभीर सवालों के घेरे में है। हाल ही में कंडक्टर मनोज द्वारा कथित फर्जी टिकट काटने का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि अब डिपो से जुड़ा एक और हैरतअंगेज़ खुलासा सामने आया है। आरोप है कि यहां काग़ज़ों में नौकरी किसी और की, जबकि ड्यूटी कोई और कर रहा है—और यह सब पिछले दो वर्षों से कथित तौर पर विभागीय संरक्षण में चल रहा है।
क्या है पूरा मामला?
सूत्रों और कर्मचारियों के हवाले से जो तथ्य सामने आए हैं, उनके अनुसार इम्तियाज़ अहमद के नाम पर काग़ज़ों में अनुशासन/नियुक्ति दर्ज है, लेकिन आरोप है कि वे नियमित रूप से ड्यूटी पर उपस्थित नहीं होते, यहां तक कि कंप्यूटर संचालन जैसी बुनियादी जिम्मेदारियाँ निभाने में भी असमर्थ बताए जा रहे हैं। वहीं दूसरी ओर शमसुल खान नामक व्यक्ति पर आरोप है कि वह बिना वैध नियुक्ति के वर्षों से वही काम कर रहा है, जो काग़ज़ों में किसी और के नाम दर्ज है।
दो साल से कैसे चलता रहा खेल?
सबसे बड़ा सवाल यही है कि अगर ये आरोप सही हैं तो दो साल तक यह व्यवस्था कैसे चलती रही?
आरोप यह भी है कि इस पूरे तंत्र को डिपो के ARM (असिस्टेंट रीजनल मैनेजर) का संरक्षण मिला हुआ था। कहा जा रहा है कि बिना उच्चाधिकारियों की जानकारी/संरक्षण के ऐसा संभव नहीं। सूत्र यह भी दावा कर रहे हैं कि इस कथित व्यवस्था में आर्थिक लेन-देन भी हुआ—हालांकि इसकी पुष्टि के लिए स्वतंत्र जाँच अनिवार्य है।
CCTV और कर्मचारियों के बयान खोल सकते हैं राज
डिपो परिसर में लगे CCTV कैमरों की फुटेज यदि निष्पक्ष रूप से खंगाली जाए, तो आरोपों की सच्चाई सामने आ सकती है। इसके अलावा, अन्य कर्मचारियों के बयान, ड्यूटी रजिस्टर, बायोमेट्रिक/हाज़िरी रिकॉर्ड, लॉग-इन डेटा और वेतन भुगतान से जुड़े दस्तावेज़ भी इस कथित फर्जीवाड़े की परतें खोल सकते हैं।
नियमों की खुली अवहेलना?
रोडवेज जैसे संवेदनशील सार्वजनिक उपक्रम में
नियुक्ति नियमों का पालन
ड्यूटी रोस्टर की पारदर्शिता
हाज़िरी और भुगतान का मिलान
आईटी/कंप्यूटर कार्य के लिए योग्य कर्मियों की तैनाती
ये सभी अनिवार्य शर्तें हैं। आरोप है कि इन शर्तों को दरकिनार कर नियमों की खुली अवहेलना की गई, जिससे न केवल विभाग की साख पर सवाल उठे, बल्कि सरकारी धन के दुरुपयोग की आशंका भी बढ़ी।
पहले भी उठते रहे हैं सवाल
यह पहला मौका नहीं है जब कासगंज डिपो पर उंगलियाँ उठीं। इससे पहले फर्जी टिकट, वसूली, और अनियमितताओं के आरोप सामने आते रहे हैं। ऐसे में यह नया मामला व्यवस्था में गहरे बैठे कथित भ्रष्टाचार की ओर इशारा करता है।
ARM की भूमिका पर सबसे बड़ा सवाल
आरोपों के केंद्र में ARM की भूमिका है। सवाल यह है कि
क्या उन्हें इस कथित व्यवस्था की जानकारी थी?
अगर नहीं, तो निगरानी में चूक कैसे हुई?
अगर थी, तो किस आधार पर इसे चलने दिया गया?
जनहित में इन सवालों के जवाब लिखित और तथ्यात्मक रूप से सामने आना ज़रूरी है।
कर्मचारियों में भय का माहौल?
डिपो से जुड़े कुछ कर्मचारियों का कहना है कि शिकायत करने पर कार्रवाई का डर बना रहता है। ऐसे में कई लोग चुप्पी साध लेते हैं। यह स्थिति किसी भी सरकारी संस्थान के लिए चिंताजनक है, क्योंकि व्हिसल-ब्लोअर संरक्षण के बिना सच्चाई सामने आना मुश्किल हो जाता है।
प्रशासन और सरकार से माँग
अब आवश्यकता है कि
1. स्वतंत्र उच्चस्तरीय जाँच कराई जाए।
2. CCTV फुटेज, ड्यूटी रजिस्टर, वेतन और नियुक्ति दस्तावेज़ जब्त कर उनका मिलान हो।
3. आरोपों के दौरान जिम्मेदार अधिकारियों को जाँच पूरी होने तक अलग किया जाए, ताकि निष्पक्षता बनी रहे।
4. यदि आरोप सिद्ध हों तो कठोर विभागीय और कानूनी कार्रवाई की जाए।
5. भविष्य में ऐसी अनियमितताओं को रोकने के लिए डिजिटल ऑडिट और रियल-टाइम मॉनिटरिंग लागू की जाए।
जनता जानना चाहती है
कासगंज की जनता यह जानना चाहती है कि
क्या रोडवेज डिपो में काग़ज़ों का खेल यूँ ही चलता रहेगा?
क्या जिम्मेदार अधिकारियों पर कभी जवाबदेही तय होगी?
क्या सरकारी नौकरी को निजी सौदेबाज़ी का माध्यम बना दिया गया है?
(यह रिपोर्ट किसी को दोषी ठहराने का दावा नहीं करती, बल्कि गंभीर आरोपों और दस्तावेज़ी सवालों को सामने रखती है।) अब गेंद प्रशासन के पाले में है। यदि समय रहते निष्पक्ष जाँच नहीं हुई, तो यह मामला न केवल कासगंज रोडवेज की साख पर, बल्कि पूरे तंत्र की पारदर्शिता पर सवाल खड़े करेगा।
अब देखना यह है कि क्या कार्रवाई होती है। या यह मामला भी फाइलों में दबकर रह जाएगा।
